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पहर की बात

काफ़ी दिनों बाद आज हम वापस आये हैं इस ब्लॉग की धरती पर। जो मज़ा कम्प्यूटर या लैप्टॉप पर अलग से जुड़ा हुआ की बोर्ड में धाक जमाकर लिखने में है वो इस फ़ोन में कहाँ ये तो बस छोटे मोटे काम के लिए ही बना है चाहे लाखों का छोटू मशीन लेलो। ठंड काफ़ी बढ़ चुकी है सर्दी भी हो गयी थी दूठो cetrizine नामक गोली खाया तो ठीक है पर असली स्वाद अभी भी ग़ायब है, अभी सिर्फ़ ज़्यादा नमक,ज़्यादा मिर्च और चीनी का ही समझ आ रहा है। कथित लोगों द्वारा शरीर में पैदा करने वाले तरल पदार्थ तो हमसे बहुत दूर चले गये हैं।  फ़ोन में तो ज़्यादा टाइप नहीं कर पाऊँगा जब हाथ में कम्प्यूटर आएगा या फिर कोई हिंदी में एक्स्पर्ट मिले तो उससे बहुत सारे ब्लॉग बताकर टाइप करवाने की इच्छा है। राम-राम जय हिंद। 

टीचर्स डे

आज टीचर्स डे है तो हम थोड़ी इस पर चर्चा करते है, उसके बाद अपने मुद्दे पर आएंगे, भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय टीचर्स डे 5 अक्टूबर को मनाया जाता है। मजेदार बात यह है कि टीचर्स डे पूरी दुनिया में मनाया जाता है। कई देश में इस दिन अवकाश रहता है तो कुछ देशों में नहीं रहता है। सबसे पहले टीचर्स डे भारत में 1957 में मनाया गया था, यह दिन शिक्षकों की प्रशंसा करने का स्पेशल दिन माना जाता है इस दिन विद्यार्थी अपने टीचर को उपहार या भेंट, गिफ्ट देते हैं। इस दिन महान शिक्षावादी और भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था उन्हीं की याद में टीचर डे मनाया जाता है, उनका मानना था कि शिक्षक का दिमाग देश में सबसे बेहतर दिमाग होता है वह बहुत अच्छे दार्शनिक थे शिक्षक तो थे ही,  कहा जाता है कि एक बार उनके कुछ स्टूडेंट और दोस्त उनके जन्मदिन को मनाना चाहते थे मतलब सेलिब्रेट करना चाहते थे, तब उन्होंने कहा था कि मेरा जन्मदिन अलग मनाने के बजाय अगर मेरा जन्मदिन टीचर्स डे के रूप में मनाया जाए तो मुझे गर्व महसूस होगा। इसके बाद आज तक 5 सितंबर को डॉक्टर

कॉफी की कहानी

नमस्कार बहुत दिनों के बाद आज आप सब को बताते हैं कॉफी से संबंधित छोटी सी दास्तां- वैसे तो काफी लोगों के लिए महज गर्म दूध थोड़े कॉफी और चुटकी भर चीनी का मिश्रण हो पर कॉफी के  बहाने जुड़े हुए हैं हमारे समाज में। बड़े-बड़े शहरों में छोटे शहरों नगरों में युवक- युवतियां इसी के माध्यम से मिलने का प्रोग्राम बनाते हैं जाहिर है इससे वहां की कुछ दुकानें हैं जो सिर्फ कॉफी का इंटीरियर बनाकर मुनाफा कमाती है। कुछ लोगों के जीवन में दिनचर्या की शुरुआत का हिस्सा बन गया है। हमें तो लोगों को देखकर ही कॉफी पीने का थोड़ा सीखे हैं शौक तो नहीं बोल सकते बचपन से तो चाय पी रहे हैं, बिना दूध वाला कभी अगर मौका मिला तो बाहर में मिलता था होटल में या किसी के यहां मेहमान चले गए तो आधा गिलास भर दिया स्टील गिलास में दूध वाला जैसे कि चाय हमने कभी देखा ही नहीं है। यही होता है अक्सर गांव में। कुछ बच्चे तो छोटे बच्चे अक्सर गांव में सुबह सुबह इसी वजह से मार खाते हैं कि चाय चाहिए चाहिए चाहिए इधर बच्चा भी ढीठ उधर उसकी मां भी ढीठ। इस बदलते दौर के दरमियां चाय कुछ पीछे छूट सी गई है।
अच्छा तो आज अंग्रेजी कैलेंडर के साथ २०१७ ख़त्म हो जायेगा, और नयी सुबह के साथ २०१८ का धूमधाम के साथ आगमन होगा. वैसे देखा जाये तो सिर्फ तारीखे ही बदली है, नया कुछ नहीं है. साल का बदलना सिर्फ वैसे ही है जैसे सांप अपना पुराना खाल त्यागकर नया धारण करता है, बसंत ऋतू में पेड़- पौधे पुराने पत्ते त्याग देते हैं. खुद में बदलाव लेन के लिए संघर्ष करते है कानूनन प्रकृति बदलाव का नियम है, न तो इसे रोका जा सकता है इसमें कोई बदलाव लाये जा सकते हैं हाँ पर खुद में बदलाव ला कर संघर्ष करके, अतीत को भूलकर नहीं उससे सीखकर आगे बहुत अच्छा किया जा सकता है. जो वर्ष बीता उसम न जाने क्या क्या हुआ नहीं हुआ कितना खोया कितना पाया क्या संजोया क्या भिगोया अब तो ऐसा भी हो गया की कुछ ऐसा कहें तो गलत नहीं होगा की जितना हम बाहर से सीख रहे हैं उससे ज्यादा अतीत को ध्यान में रखकर उससे सीखकर कार्य किया जा सकता है एक बात ध्यान दिया जाये तो लगता है कि जैसे हमने २०१७ के जनवरी में प्रवेश किया लगा कि अरे अभी तो पूरा एक साल बाकि है परन्तु वही सोची हुई बाते आज आके पता चलता है कि अरे भई अभी तो नया साल मनाया भगवान् जाने इतना जल्दी साल

सिचुएशन

होके मायूस ना आँगन से उखाड़ो पौधे धूप बरसी है तो बारिश भी यहीं होगी।

अधिकारक क्षेत्र

चले है कुछ सपने लिए अपने ही अधिकारक क्षेत्र लिए हुए लेकिन इस बात को याद रखना कदापि गलत नहीं होगा की हर मुकाम अपने अधिकार में नहीं होती कुछ चीजे पर दूसरो की की लगाम आवश्यक है। जो थोड़ी हमारी समझ से परे हो कुछ अच्छे हो कुछ ज्यादा भले-बुरे  हो पर कहीं न कहीं सीख देते है की क्या गलत है क्या सहीं है। मैंने देखा और महसूस किया की कुछ चीजे बदलने वाली नहीं है, मैं फंस गया हूँ ,मैं मेरे दोस्त किस हालात तक स्वीकार करेंगे - शायद मैं टूट जाऊं या फिर इसका मतलब हो सकता है कि मैंने अपनी शिक्षा बर्बाद की पैसे या अपना दिमाग। खैर हर दिन मैं अपना सुराग ढूंढने की कोशिश करता हूँ वैसे भी परिवर्तन ही संसार का नियम है। अक्सर मैं अपने रिश्ते और वर्तमान से उदास होता हूँ, मेरे लिए खुद से परेशान होना यह मेरे लिए खुद को चुनौती देने की शुरुआत  है, लगभग हर दिन मैं खुद को जरूरत से ज्यादा धक्का देता हूँ जब तक मुझे दर्द नहीं होता, पर हाँ कभी कभी तो बहुत होता  है,                                                      लेकिन मुझे पता है की वापस उन चीजों के पास लौटूंगा जिसे मैं वाकई पसंद करता हूँ। 

अनसूझी दिमाग़ी हालात

मैं आज पेश करता हूँ ख़ुद की थोड़ी अनसूझी दिमाग़ी हालात की कड़ी- लगता है की मैं वापस चला जाऊँ उस पुराने फ़्लैट पे जहाँ किसी से बातचीत ना हो,तीन टाइम का खाना समय पर आ जाये। शाम होते ही पुरानी गाड़ी से चले जो कभी रोड पे चली हाई नहीं जिससे पुराने गानों की आवाज़ कानों में मधुर छा रही है। कुछ अगर मैं छेड़ दूँ राग अपने लिये शाम में तो कुछ चुनिंदे दोस्त बुला लूँ तसल्ली के लिये कि अभी मैं ज़िंदा हूँ।  मैं कभी ख़ुद में अपमानित महसूस करता हूँ शायद मैं जो पाया उससे ज़्यादा चाहता हूँ, करना चाहता हूँ x हो जाता है y इस तरह मैं सबकुछ छोड़कर शायद हालात या मैं या माता-पिता चाहते सो मैं डॉक्टर बनने चला आया।