अच्छा तो आज अंग्रेजी कैलेंडर के साथ २०१७ ख़त्म हो जायेगा, और नयी सुबह के साथ २०१८ का धूमधाम के साथ आगमन होगा. वैसे देखा जाये तो सिर्फ तारीखे ही बदली है, नया कुछ नहीं है. साल का बदलना सिर्फ वैसे ही है जैसे सांप अपना पुराना खाल त्यागकर नया धारण करता है, बसंत ऋतू में पेड़- पौधे पुराने पत्ते त्याग देते हैं. खुद में बदलाव लेन के लिए संघर्ष करते है कानूनन प्रकृति बदलाव का नियम है, न तो इसे रोका जा सकता है इसमें कोई बदलाव लाये जा सकते हैं हाँ पर खुद में बदलाव ला कर संघर्ष करके, अतीत को भूलकर नहीं उससे सीखकर आगे बहुत अच्छा किया जा सकता है. जो वर्ष बीता उसम न जाने क्या क्या हुआ नहीं हुआ कितना खोया कितना पाया क्या संजोया क्या भिगोया अब तो ऐसा भी हो गया की कुछ ऐसा कहें तो गलत नहीं होगा की जितना हम बाहर से सीख रहे हैं उससे ज्यादा अतीत को ध्यान में रखकर उससे सीखकर कार्य किया जा सकता है एक बात ध्यान दिया जाये तो लगता है कि जैसे हमने २०१७ के जनवरी में प्रवेश किया लगा कि अरे अभी तो पूरा एक साल बाकि है परन्तु वही सोची हुई बाते आज आके पता चलता है कि अरे भई अभी तो नया साल मनाया भगवान् जाने इतना जल्दी साल ख़त्म कैसे हो गया हर बार ऐसा होता है और हर बार कस्मे -वादे  तोड़े निभाए जाने की प्रक्रिया शुरू  होती है  कोई अपना पुराना दुखड़ा लेके अपनी ख़ुशी जाहिर करता है तो कोई अपना बीता खुशनुमा पल,
आज सिर्फ भारत में ही नहीं बाहर देशों में नए वर्ष का स्वागत जोर शोर से होता है ३१ दिसंबर कि शाम से महफ़िलें जमना शुरू हो जायेगा जो अगले सुबह कि धमाचौकड़ी (नाच गाने) के साथ निपटाया जायेगा
बच्चे बूढ़े सभी आपस में पार्टी का आयोजन करते है कई जगहों पर विशेष रूप से कई प्रकार से खेल भी  खेलाए जाते है. बहुत से लोग नया साल का पहला दिन ईश्वर को याद करके नए साल कि शुरुआत करेंगे काफी लोग बाहर पिकनिक जाने का प्रोग्राम भी करते हैं
कुछ लोग हमारे जैसे भी होते है जो दिन में कहीं नहीं जाकर अपने खाने और सोने का ही इंतजाम करने में ही लगे रहते है.





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