अनसूझी दिमाग़ी हालात

मैं आज पेश करता हूँ ख़ुद की थोड़ी अनसूझी दिमाग़ी हालात की कड़ी- लगता है की मैं वापस चला जाऊँ उस पुराने फ़्लैट पे जहाँ किसी से बातचीत ना हो,तीन टाइम का खाना समय पर आ जाये। शाम होते ही पुरानी गाड़ी से चले जो कभी रोड पे चली हाई नहीं जिससे पुराने गानों की आवाज़ कानों में मधुर छा रही है।कुछ अगर मैं छेड़ दूँ राग अपने लिये शाम में तो कुछ चुनिंदे दोस्त बुला लूँ तसल्ली के लिये कि अभी मैं ज़िंदा हूँ। मैं कभी ख़ुद में अपमानित महसूस करता हूँ शायद मैं जो पाया उससे ज़्यादा चाहता हूँ, करना चाहता हूँ x हो जाता है y इस तरह मैं सबकुछ छोड़कर शायद हालात या मैं या माता-पिता चाहते सो मैं डॉक्टर बनने चला आया।

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