अंधेर नगरी चौपट राजा अंधेर नगरी चौपट राजा टेक शेर भाजी टेक शेर खाजा ये बहुत पुरानी कहावत है आप सबने सुना ही होगा। अचानक मेरे दिमाग में कुछ आया जब मैं बिस्तर पर लेटा था की ये जो बात है ये हम पर भी कही ना कही लागू हो ही जाती है। कुछ परिस्थिति ऐसी होते है जब हमको अपना मौलिक अधिकार मालूम होते हुए भी क्योंकि हम भारतीय है, जहाँ पर हमारा ऐसा शोषण और तिरस्कार झेलना पड़ता है जो हमें मालूम तो होता पर कुछ कर नहीं सकते है पर फ़िल्मी स्टाइल में भले ही बात बोल भी दे की अरे कुछ नई होता असल जिंदगी में ना ना पर प्रैक्टिकल रूप से ये बात नहीं जमती। क्योंकि कुछ ऐसे नुमाइंदे पलते है हमारे बिच जो अपने लोगो के द्वारा ही पाली गयी ऐसा कह सकते है,जिसका दुःख हमें झेलना पड़े हालाँकि उस आये हुए परिस्थिति को अपनी ही गलती या कोई मज़बूरी बता कर अपने आप को संतोष करना ही पड़ता है और कोई दूसरा ऑप्शन ही नहीं है। आखिर कर हम समझौता कर ही लेते है और अपने आप में चलने लगते है. अब तो वजीर चल पड़ी है चाल सही हो ना हो जीत संभव है।
काफ़ी दिनों बाद आज हम वापस आये हैं इस ब्लॉग की धरती पर। जो मज़ा कम्प्यूटर या लैप्टॉप पर अलग से जुड़ा हुआ की बोर्ड में धाक जमाकर लिखने में है वो इस फ़ोन में कहाँ ये तो बस छोटे मोटे काम के लिए ही बना है चाहे लाखों का छोटू मशीन लेलो। ठंड काफ़ी बढ़ चुकी है सर्दी भी हो गयी थी दूठो cetrizine नामक गोली खाया तो ठीक है पर असली स्वाद अभी भी ग़ायब है, अभी सिर्फ़ ज़्यादा नमक,ज़्यादा मिर्च और चीनी का ही समझ आ रहा है। कथित लोगों द्वारा शरीर में पैदा करने वाले तरल पदार्थ तो हमसे बहुत दूर चले गये हैं। फ़ोन में तो ज़्यादा टाइप नहीं कर पाऊँगा जब हाथ में कम्प्यूटर आएगा या फिर कोई हिंदी में एक्स्पर्ट मिले तो उससे बहुत सारे ब्लॉग बताकर टाइप करवाने की इच्छा है। राम-राम जय हिंद।
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