अंधेर नगरी चौपट राजा अंधेर नगरी चौपट राजा टेक शेर भाजी टेक शेर खाजा ये बहुत पुरानी कहावत है आप सबने सुना ही होगा। अचानक मेरे दिमाग में कुछ आया जब मैं बिस्तर पर लेटा था की ये जो बात है ये हम पर भी कही ना कही लागू हो ही जाती है। कुछ परिस्थिति ऐसी होते है जब हमको अपना मौलिक अधिकार मालूम होते हुए भी क्योंकि हम भारतीय है, जहाँ पर हमारा ऐसा शोषण और तिरस्कार झेलना पड़ता है जो हमें मालूम तो होता पर कुछ कर नहीं सकते है पर फ़िल्मी स्टाइल में भले ही बात बोल भी दे की अरे कुछ नई होता असल जिंदगी में ना ना पर प्रैक्टिकल रूप से ये बात नहीं जमती। क्योंकि कुछ ऐसे नुमाइंदे पलते है हमारे बिच जो अपने लोगो के द्वारा ही पाली गयी ऐसा कह सकते है,जिसका दुःख हमें झेलना पड़े हालाँकि उस आये हुए परिस्थिति को अपनी ही गलती या कोई मज़बूरी बता कर अपने आप को संतोष करना ही पड़ता है और कोई दूसरा ऑप्शन ही नहीं है। आखिर कर हम समझौता कर ही लेते है और अपने आप में चलने लगते है. अब तो वजीर चल पड़ी है चाल सही हो ना हो जीत संभव है।
नमस्कार बहुत दिनों के बाद आज आप सब को बताते हैं कॉफी से संबंधित छोटी सी दास्तां- वैसे तो काफी लोगों के लिए महज गर्म दूध थोड़े कॉफी और चुटकी भर चीनी का मिश्रण हो पर कॉफी के बहाने जुड़े हुए हैं हमारे समाज में। बड़े-बड़े शहरों में छोटे शहरों नगरों में युवक- युवतियां इसी के माध्यम से मिलने का प्रोग्राम बनाते हैं जाहिर है इससे वहां की कुछ दुकानें हैं जो सिर्फ कॉफी का इंटीरियर बनाकर मुनाफा कमाती है। कुछ लोगों के जीवन में दिनचर्या की शुरुआत का हिस्सा बन गया है। हमें तो लोगों को देखकर ही कॉफी पीने का थोड़ा सीखे हैं शौक तो नहीं बोल सकते बचपन से तो चाय पी रहे हैं, बिना दूध वाला कभी अगर मौका मिला तो बाहर में मिलता था होटल में या किसी के यहां मेहमान चले गए तो आधा गिलास भर दिया स्टील गिलास में दूध वाला जैसे कि चाय हमने कभी देखा ही नहीं है। यही होता है अक्सर गांव में। कुछ बच्चे तो छोटे बच्चे अक्सर गांव में सुबह सुबह इसी वजह से मार खाते हैं कि चाय चाहिए चाहिए चाहिए इधर बच्चा भी ढीठ उधर उसकी मां भी ढीठ। इस बदलते दौर के दरमियां चाय कुछ पीछे छूट सी गई है।
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