सफर दो कदम का मंजिल दूर तलक सफर का क्या है कहा से शुरू और कहा ख़त्म पता ही नही चलता की आखिर क्या चल रहा है। फ़िलहाल अपना भागदौड़ का सिस्टम खारकीव नामक शहर की यायावर जिंदगानी में दिनचर्या भी काटना ख़ुशी के साथ साथ कुछ वाकया भी सहना पड़ता है जैसे की ठण्ड का मौसम भारी संकट वाला सिस्टम है। घर में तो जैसे भी काट जाता है पर जब बात हो बहार जाना है तो इतना ठण्ड की अब अपने मुल्क से तो भारी है। रस्ते चलते लिए हुए एक फोटो विदेशी ठण्ड
खास यादें विथ विडियो ये बात उस समय की है जब हम भिलाई में रहा करते थे तो पता की शादी में जाना है तो अचानक योजना बनी की चला जाए मैं मेरे दोस्त लोचन सिदार किशोर कका मचान और नीलेश गुरूजी निकले चार पायी की सवार होके बहुत एन्जॉय किये फिर अचानक बीच में तालाब मिला जहाँ नहाने के लिए तैयार हो गए तब मेरे पास नोकिया लुमिया 720 था जिसमे विडियो लिया गया बहुत खास पल थे शायद अब कभी वैसा पॉसिबल हो चाहे हम दुनिया घूम ले पर वैसा मजा वापस नही आ सकते वो तो शुक्र है के टेक्नोलॉजी के चलते खिंच के रख लेते है जो कभी देखे तो यादगार याद, याद आ जाता है। फिर इस विडियो को यूट्यूब में भी डाला था कभी शैतान दिमाग के चलते। ये लिंक है https://youtu.be/huYqm6df0Lg
जब जागे तब सवेरा अनायास ही जब किसी चीज के बारे में बेमतलब और जबरदस्ती किया जाये तो एक हद तक ठीक भी है। मैं याद करता हु वो दिन जब बचपन में भले ही न कोई होशियारी,चालाकी और न ही सूझबूझ पर एक बात है हम सच्चे जरूर 100 परसेंट थे। ये उस शीर्षक के बारे में बात होने जा रही है जिसके शीर्षक का सारांश ही गुप्तनुमा है वैसे कुछ तो चीजे गुप्त होनी ही चाहिए पर क्या मतलब जो हमें दुःख देने का कारण बने तो ये भी सही नहीं है। जो चीज कभी हम सोच न सके आखिर क्यों इस तरह चली जा रही है खुद के मना करने के बावजूद ऐसा लगता है कभी कभी की यूँ ही चलता रहा तो मंजिल के रास्तो में कही थोड़ी धुंधलाहट आ ही जानी है। अगर ये सच है की बदल जाये तो आगे कही न कही जरूर अपने आप को सहायता जरूर मिलेगी। वैसे भी इस सब में किसी को दोषी ठहरा नहीं सकते हालाँकि तसल्लीनुमा जायज ठहराया जा सकता है। पर अब कोशिश तो यही रहेगी की इस नियमावली को ही सीढ़ी बनाकर आगे चला जायेगा। ( "डर लगता है कभी कभी ये जहाँ ये गुलिस्तां कही हमें पीछा छोड़कर आगे न निकल जाये" ) गली में
व्यस्त रहित समय रहते भी समय रहता नहीं ऐसे माहौल में कही निकल जाना बड़ी बात हो जाती है। ठंडी ठंडी हवा 12 डिग्री टेम्परेचर और गर्मी का एहसास। स्थान- यूक्रेन (खारकीव) यूरोप
अंधेर नगरी चौपट राजा अंधेर नगरी चौपट राजा टेक शेर भाजी टेक शेर खाजा ये बहुत पुरानी कहावत है आप सबने सुना ही होगा। अचानक मेरे दिमाग में कुछ आया जब मैं बिस्तर पर लेटा था की ये जो बात है ये हम पर भी कही ना कही लागू हो ही जाती है। कुछ परिस्थिति ऐसी होते है जब हमको अपना मौलिक अधिकार मालूम होते हुए भी क्योंकि हम भारतीय है, जहाँ पर हमारा ऐसा शोषण और तिरस्कार झेलना पड़ता है जो हमें मालूम तो होता पर कुछ कर नहीं सकते है पर फ़िल्मी स्टाइल में भले ही बात बोल भी दे की अरे कुछ नई होता असल जिंदगी में ना ना पर प्रैक्टिकल रूप से ये बात नहीं जमती। क्योंकि कुछ ऐसे नुमाइंदे पलते है हमारे बिच जो अपने लोगो के द्वारा ही पाली गयी ऐसा कह सकते है,जिसका दुःख हमें झेलना पड़े हालाँकि उस आये हुए परिस्थिति को अपनी ही गलती या कोई मज़बूरी बता कर अपने आप को संतोष करना ही पड़ता है और कोई दूसरा ऑप्शन ही नहीं है। आखिर कर हम समझौता कर ही लेते है और अपने आप में चलने लगते है. अब तो वजीर चल पड़ी है चाल सही हो ना हो जीत संभव है।
मनाली से रोहतक उनचास किलोमीटर पहाड़ी सिंगल रास्ता स्कार्पियो में 6 मित्र एक महिला मित्र और स्कार्पियो चालक। चालक भैया काफी एक्सपीरियंस थे कोई फ़िक्र नहीं करने दिया निश्चिन्त बहुत ही डरावना और मजेदार सफर था। चतुराई दिखाते हुए मैं आगे वाली सीट पे झट से बैठ गया फिर हम निकल पड़े मजे करते हुए इधर उधर का नजारे का लुफ्त उठाते हुए।